है पुरुषोत्तम दीनदयाला, कृपा के है सागर दशरथ लाला। अवध तुम्हें था देखन को तरसा। स्वर्ग से आ रही पुष्पों की वर्षा। नाच रहे हनुमान, अवध में आए सिया के राम।अवध में आए सिया के राम। राम राम,आए सिया के राम।अवध में आए सिया के राम।
हम प्रभु चरणों में हमको रखना, भवसागर से तर जाएंगे। हाथ जो छोड़ा तुमने हमारा, हम तो प्रभु जी मर जाएंगे।मर जाएंगे। हमको प्रभु वर ऐसा वर दो, अपने प्यार में पागल कर दो। हटे ना तुमसे ध्यान।अवध में आए सिया के राम।अवध में आए सिया के राम।अवध में आए सिया के राम।आए सिया के राम।अवध में आए सिया के राम।
ऐसा कौन सा कारज प्रभु जी, जो ना तुमने संवारा। हाथ पड़कर थामा मुझको, जब-जब भी मैं हारा। परमेश्वर प्रभु दाता हो तुम, मेरे पिता और माता हो तुम। चरणों में आपके तीर्थ मेरे, चरणों में आपके धाम।अवध में आए सिया के राम।अवध में आए सिया के राम।आए सिया के राम।अवध में आए सिया के राम।
अवध में आए सिया के राम।अवध में आए सिया के राम।अवध में आए सिया के राम।अवध में आए सिया के राम।अवध में आए सिया के राम।अवध में आए सिया के राम।