तर्ज,मुझे तेरी मोहब्बत का सहारा
कोई जाये जो वृन्दावन, मेरा पैगाम ले जाना, मैं खुद तो जा नहीं पाऊँ, मेरा प्रणाम ले जाना।कोई जाये जो वृन्दावन, मेरा पैगाम ले जाना, मैं खुद तो जा नहीं पाऊँ, मेरा प्रणाम ले जाना।
ये कहना मुरली वाले से मुझे तुम कब बुलाओगे, पड़े जो जाल माया के उन्हें तुम कब छुडाओगे। मुझे इस घोर दल-दल से, मेरे भगवान ले जाना। कोई जाये जो वृन्दावन मेरा पैगाम ले जाना, मैं खुद तो जा नहीं पाऊँ, मेरा प्रणाम ले जाना।
जब उनके सामने जाओ तो उनको देखते रहना, मेरा जो हाल पूछे तो जुबाँ से कुछ नहीं कहना। बड़ा देना कुछ एक आँसू मेरी पहचान ले जाना।कोई जाये जो वृन्दावन मेरा पैगाम ले जाना, मैं खुद तो जा नहीं पाऊँ, मेरा प्रणाम ले जाना।
जो रातें जाग कर देखें, मेरे सब ख्वाब ले जाना, मेरे आँसू तड़प मेरी, मेरे सब भाव ले जाना । न ले जाओ अगर मुझको, मेरा सामान ले जाना ॥ कोई जाये जो वृन्दावन मेरा पैगाम ले जाना, मैं खुद तो जा नहीं पाऊँ, मेरा प्रणाम ले जाना।
मैं भटकूँ दरबदर प्यारे, जो तेरे मन में आये कर मेरी जो साँसे अंतिम हो,वो निकलें तेरी चौखट पर ‘हरिदासी’ हूँ मैं तेरी,मुझे बिन दाम ले जाना ॥कोई जाये जो वृन्दावन मेरा पैगाम ले जाना मैं खुद तो जा नहीं पाऊँ मेरा प्रणाम ले जाना ॥