लंका से मैं आया हूँ ये बोले हनुमान। रोती है जनक दुलारी क्या भूल गए भगवान।लंका से मैं आया हूँ ये बोले हनुमान। रोती है जनक दुलारी क्या भूल गए भगवान।
लंका में जाके माँ का कहीं पता नहीं पाया। एक भक्त था प्रभु आपका उसने यह बतलाया। वो भाई था रावण का विभीषण उसका नाम। रोती है जनक दुलारी क्या भूल गए भगवान।
एक बाग था अशोक का वहाँ वृक्ष था भारी। बैठी थी उसके नीचे मिथलेश कुमारी। मैंने जाकर जग जननी को किया प्रणाम। रोती है जनक दुलारी क्या भूल गए भगवान।
निसाचरों का पहरा वहाँ हरदम रहता है। रावण भी जी भर भर के दुःख माँ को देता है। दुष्टों का वध करने को जल्दी आ जाओ राम। रोती हैं जनक दुलारी क्या भूल गए भगवान।
लंका से मैं आया हूँ ये बोले हनुमान। रोती है जनक दुलारी क्या भूल गए भगवान।लंका से मैं आया हूँ ये बोले हनुमान। रोती है जनक दुलारी क्या भूल गए भगवान।