तर्ज, तुझे सूरज कहूं या चंदा
तुझे शंकर कहूँ या शंभु,या कहूँ नांदिये वाला,
तेरे रमी विभूति तन पे,काँधे पे विशधर काला,
ओम हरी ओम हरी ओम हरी ओम,
ओम हरी ओम हरी ओम हरी ओम।
गंगाधर नाम तुम्हारा,केशों से गंगा बहती,
यो तरण तारिणी गंगे,सारे जग के दुखडे धोती
ख़ुशियों से दामन भरती,
जीवन में करे उजाला,तेरे रमी विभूति तन पे,
काँधे पे विशधर काला,ओम हरी ओम हरी ओम हरी ओम,ओम हरी ओम हरी ओम हरी ओम।
तने मंथन किया समंदर,फिर हुई थी खींचा तानी,ना देखा सुना ना जग में,
तुझसा कोई ओघड़ दानी।तूने सबको अमृत बाँटा,खुद काल घूँट पी डाला
तेरे रमी विभूति तन पे,काँधे पे विशधर काला,
ओम हरी ओम हरी ओम हरी ओम,
ओम हरी ओम हरी ओम हरी ओम।
दी गंगा भगीरथ को,कटे सगर राज के जाले
लंका दे दी रावण को,हे भांग धतूरे वाले
तेरे देख ढंग निराले,तेरे देखे खेल निराले
तेरे रमी विभूति तन पे,काँधे पे विशधर काला,
ओम हरी ओम हरी ओम हरी ओम,
ओम हरी ओम हरी ओम हरी ओम।
तेरे सीश साज रहे चंदा,संग गौरा जैसी नारी,
तू रहता मस्त भाँग में,करे नंदी की सवारी,
देवों में सबसे पहले पूजता,तेरा गणपति लाला,
तेरे रमी विभूति तन पे,काँधे पे विशधर काला,
ओम हरी ओम हरी ओम हरी ओम,
ओम हरी ओम हरी ओम हरी ओम।