तर्ज- सांवरे से मिलने का सत्संग
श्याम पे भरोसा है,फिर काहे घबराते हो। तुम्हें छोड़ के जो गया ही नहीं, उसे काहे बुलाते हो, फिर काहे घबराते हो ।श्याम पे भरोसा हैं।
सूखते नहीं है प्रभु,ये हाथों के छाले तेरे। नाव खैने से फुर्सत नहीं, कब मरहम लगाते हो।
श्याम पे भरोसा हैं,फिर काहे घबराते हो ।।
तुम्हें छोड़ कर के भक्तों को, कभी जाते नहीं देखा। फिर भी भक्त तेरे कहते है, तुम देरी से आते हो। श्याम पे भरोसा हैं, फिर काहे घबराते हो।
जो कुछ भी पास तेरे, तुमने मेहनत से कमाया है। अपनी सारी कमाई प्रभु, तुम भक्तों पे लुटाते हो। श्याम पे भरोसा हैं, फिर काहे घबराते हो ।
काम भक्तों का इतना प्रभु, तुम्हें ‘बनवारी’ फुर्सत नहीं।काम भक्तों का इतना प्रभु, तुम्हें ‘बनवारी’ फुर्सत नहीं, इसलिये काम खुद का, तुम भक्तों से कराते हो। श्याम पे भरोसा हैं, फिर काहे घबराते हो ।
श्याम पे भरोसा है, फिर काहे घबराते हो, तुम्हें छोड़ के जो गया ही नहीं, उसे काहे बुलाते हो,
श्याम पे भरोसा हैं,फिर काहे घबराते हो ।।