भोले में समझ न पाई क्यों तुमने भस्म रमाई।
हे भोले भंडारी मैं तेरी लीला समझ ना पाई।सब तो लगावे ईत्र सुगंधित तुमने भस्म लगाई।भोले में समझ न पाई क्यों तुमने भस्म रमाई।
रत्न जड़ित सोने का सब मुकुट देवता पहने। अरे अपने माथे पर चंदा है सजाया तुमने। और जटाओं से है गंगा तुमने नाथ बहाई।भोले में समझ न पाई क्यों तुमने भस्म रमाई।
हार मोतियों वाले हैं सबने गले में डाले। लेकिन कंठ तुम्हारे पड़े सर्प है काले काले। और पहनने को मृगछाला क्यों तुमको है भाई।भोले में समझ न पाई क्यों तुमने भस्म रमाई।
देवलोक में सब तो है बड़ा ही आनंद लेते। क्या आपके मन में आया जो आप कैलाश पर बैठे। काशी नगरी भी क्या अपनी तुम्हें रास ना आई। भोले में समझ न पाई क्यों तुमने भस्म रमाई।
भोले में समझ न पाई क्यों तुमने भस्म रमाई।भोले में समझ न पाई क्यों तुमने भस्म रमाई।