जय जय श्री राधा रमण, जय जय नवल किशोर जय गोपी चितचोर प्रभु, जय जय माखन चोर ।
मोर मुकूट कटी काछिनी, कर मुरली उरमाल। यह वनिक मो मन बस्यो, सदा बिहारीलाल।
पाग बनी पटुका बन्यौ, बन्यौ लाल को भेष। जय जय कुंजबिहरीलाल, की दौरि आरती लेय।
राधा मेरी स्वामिनी, में राधे जू को दास। जन्म जन्म मोहे दीजियो, श्री वृन्दावन बास।
वृन्दावन के वृक्ष को, मर्म न जाने कोय। डाल डाल और पात पात, पे राधे राधे होए।
सब द्वारिन को छोड़के, आयौ तेरे द्वार। हे वृषभान की लाडली, मेरी ओर निहार।
कनक बेल श्री राधिका सुन्दर श्याम तमाल। मम ह्रदय की कुञ्ज में बसो लाडिली लाल।
श्री मोर मुकूट झलक पे, अटक रहे मन मोह। श्री वृन्दावन की कुञ्ज, में बाँके नंदकिशोर ।
जाके मन में बस रही, जा प्यारी की मुस्कान जाके ह्रदय नारायण, ना दूजो कोई नाम।
लाड लडे श्री राधिका, मांगू गोद पसार दीजो स्वामिनी चरण रज और वृन्दावन बास।
राधे तू बडभगिनी, कौन तपस्या कीन। तीन लोक तारण तरण, सो तेरे आधीन।
श्री वृन्दावन सो वन नहीं नंदगाँव सो गाँव। बंषी वट सो वट नहीं कृष्ण नाम सो नाम।
वृन्दावन बनिक बन्यौ भ्रमर करत गुंजार ।दुल्हन प्यारी राधिका दुल्हे नंदकुमार।