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श्याम भजन लिरिक्स

Satguru hai avinashi mukti Rahat hai dashi,सतगुरु है अविनाशी मुक्ति रहत है दासी

सतगुरु है अविनाशी , मुक्ति रहत है दासी


सतगुरु है अविनाशी , मुक्ति रहत है दासी
ब्रह्मा जाको पार न पावे , निंरजन करे खवासी ।सतगुरु है अविनाशी , मुक्ति रहत है दासी,
शेष महेश मुख निशदिन गावै , सौ भी पार न पासी



शंकर जाको ध्यान धरत है , कहिये योग अभ्यासी।
चार वेद को भेद न जाणै, खोज खोज खप जासी।सतगुरु है अविनाशी , मुक्ति रहत है दासी



ओंकार में भ्रमता डोले , बिष्णु फिरैं उदासी।
नाम पदार्थ हाथ न आवे ,पड़े काल की फांसी।सतगुरु है अविनाशी , मुक्ति रहत है दासी।


अजर अमर एक प्रेम पुरुष है, वो कहिये फूल सुवास।
कहत कबीर सुणो भाई साधो, अमरापुर के वासी।सतगुरु है अविनाशी , मुक्ति रहत है दासी

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