कह देना उधो, इतनी सी बात हमारी, कठिन सौत कुब्जा के बस में, ज्यामें बसे मुरारी ।।
कह देना उस कमलनयन से, प्राण ले गया क्यूँ नहीं तन से, जैसे पानी बरसे घन से, वैसे आँसू झारी रे ।। कह देना रे उधो, इतनी सी बात हमारी, कठिन सौत कुब्जा के बस में, ज्यामें बसे मुरारी ।।
मथुरा की ये महल-हवेली, कुब्जा बन गई नई नवेली, शहरी नार बड़ी अलबेली, हमसे लगे जो प्यारी रे ।। कह देना रे उधो, इतनी सी बात हमारी, कठिन सौत कुब्जा के बस में, ज्यामें बसे मुरारी ।।
ऐसा हमको क्यों पढ़ाया, फूँक दई बिन अग्नि काया, क्यूँ ना हमको जहर पिलाया, क्यूँ ना कटारे ।। कह देना रे उधो, इतनी सी बात हमारी, कठिन सौत कुब्जा के बस में, ज्यामें बसे मुरारी ।।
हैम आयेंगे यमुना होकर, तन-मन अपनी सुधबुध खोकर, ‘तुलसी’ बेशक़ से रो-रोकर, कर दें यमुना खारी रे ।। कह देना रे उधो, इतनी सी बात हमारी, कठिन सौत कुब्जा के बस में, ज्यामें बसे मुरारी ।।