या रिमझिम करती भिलनी कठिने चाली रे।
शंकर बैठे केलाश मे वठिने चाली रे। या रिमझिम।
शंकर भोले जमा के गोले बैठे थे प्रभु ध्यान मे रिमझिम रिमझिम झांझर की झनकार पड़ी जब कान मे।रुप देख रह गये दंग सुध-बुध खो डाली रे।
या रिमझिम
बोले शंकर सुनो भिलनी बेठो पास हमारे जी।
इस तन-मन की बनो मालिक तुम बन गए दास तुम्हारे जी। तीन लोक की आज बना दूँ तुझको रानी रे। या रिमझिम
बोली मिलनी सुनो सदाशिव भवर भील म्हारा घर मे ।तेने मार के मैने ले जावे हसीं होवगी घर-घर मे ।थे बेठे प्रभु ध्यान लगावो दे दे ताली रे या रिमझिम
ज्ञान ध्यान सब गया भूल भीलनी मत डरे तु मन मे । जटा बीच मे तेने छुपालु मालूम पड़सी ही किसने। और बात मत डरे भीलनी करुंगा रुखाली रे। या रिमझिम
घर मे धारे गवैर पार्वती जटा में गंगा रहवे।
अपनो हक वो छोड़ महादेव मैने क्यू रहने देवेगी।अही बात री होवे लड़ाई नहीं विचारी रे।या रिमझिम
पार्वती ने पीहर भेज दा सुनो भीलनी रानी जी। गंगा धारी करे चाकरी तु घर की धनयानी जी
और जो शंका होवे जो मन मे देवु मिटाई रे ।या रिमझ
बेल चढ़ तो डरु महादेव सिंह देखे भय लागे। पैदल तो मे कदे ना चाली साची कहु धारे आगे जी। कहे सदाशिव डरो ना भीलनी बैठो पीठ हमारी जी। या रिमझिम
महादेव का वचन यह सुन भीलनी ने माया हटाई।
सामने ऊबी हसँ गोरजा शंकर गये सरमाई जी। मोची बन के मेने छली थी बारी धारी आई जी या रिमझिम
हाथ जोड़कर कहे गोरजा हुयो हिसाब बराबर जी। राम मण्डली कहे फिर शंकर जम गये ध्यान लगाकर जी।
सारी संगत हरदम गावे महिमा धारी जी। या रिमझिम