सभी रूप में आप विराजे,
त्रिलोकी के नाथ जी,
सारी दुनिया तुमको पूजे,
राधा जी के साथ जी।।
रूप चतुर्भुज लगे सलोना,
चारभुजा के नाथ जी,
नाथद्वारा में आप विराजे,
बन करके श्री नाथ जी,
दाड़ी में थारो हीरो चमके,
मुकुट विराजे माथ जी ।
पंढरपुर में हरी विठ्ठल,
रणछोड़ बस्या डाकोर जी,
बने गोवर्धन आप विराजे,
आकर के इंदौर जी,
द्वार तुम्हारे भक्त खड़े है,
जोड़ के दोनों हाथ जी।।
वृन्दावन में कृष्ण मुरारी,
जयपुर में गोपाल जी,
दिक्क़ी में कल्याण धणी,
म्हारो साँवरियो नंदलाल जी,
मोत्या वाला श्याम धणी अब,
सुनलिजो म्हारी बात जी।।
उत्तर मे छत्ररुप बिराजे,
बनकर बदरीनाथजी
हिमालय की गोद बसे ,
कहलावे केदार नाथजी
दक्षिण में हरी आन बसे,
बनके गिरि के बालाजी
सहज भावसे प्रसन्न रोते रामेश्वर श्रीरामजी
असे है प्रेमके प्यासे भक्त हृदय श्रीनाथजी।।
बीच समुंदर बसी द्वारीका,
जहाँ द्वरीका नाथजी
जगन्नाथजी मे आप बसे ,
जहॉ जगत पसारे हाथजी
बारा साल मे होय कलेवर,
जिमे सारी जातजी।।
रोम रोम मे बसी राधीका ,
आप बसे हो कणकण में
माता यशोदा के राज दुलारे,
आन बसो सबके मनमे
भक्त मंडली विनय करे है,
जोडके दोनो हाथजी।।6।।