रोज मेरी खिड़की से झांकता है वो।ताजा ताजा माखन मांगता है वो।
मांगता है थोड़ा थोड़ा शरमा के वो।बोलता है थोड़ा थोड़ा तुतला के वो।दे दूंगी इतना तो जनता है वो।ताजा ताजा माखन मांगता है वो।
रोज मेरी खिड़की से झांकता है वो।ताजा ताजा माखन मांगता है वो।
माखन हथेली पर रखती हूं मैं। नरम कलाई पकड़ती हूं मैं।।दे दूंगी इतना तो जनता है वो।ताजा ताजा माखन मांगता है वो।
रोज मेरी खिड़की से झांकता है वो।ताजा ताजा माखन मांगता है वो।
जब भी दहिया विलोती हूं मैं। आंसुओं से दामन भिगोती हूं में। ना दूं तो माटी उछलता है वो।ताजा ताजा माखन मांगता है वो।
रोज मेरी खिड़की से झांकता है वो।ताजा ताजा माखन मांगता है वो।