बन्सी का बजाना छोड़ दे रे नन्द मेहर के लाल।
तेरी बन्सी रस की भीनी बाजे मधुर रसाल
सुन-सुन सारी ब्रज की नारी भूल गईं घर-माल ,बन्सी का बजाना छोड़ दे रे नन्द मेहर के लाल।
बन में जाते धेनु चराते मोह लिए सब ग्वाल,
दूध बेचन को जात गुजरियाँ रोक लईं तत्काल ।बन्सी का बजाना छोड़ दे रे नन्द मेहर के लाल।
पक्षी मौन हुए पशुओं ने तजा चरन का ख्याल,
ध्यान छुटा मुनियों का वन में सुन मुरली निरधार ।बन्सी का बजाना छोड़ दे रे नन्द मेहर के लाल।
मोर-मुकुट पीताम्बर सोहे, गल वैजंती माल,
ब्रहमानन्द की सुन लो विनती दे दो दरस दयाल।बन्सी का बजाना छोड़ दे रे नन्द मेहर के लाल।