(तर्ज : किसने किया सिंगार साँवरे …)
कुटिया मेरी माँ सूनी पड़ी, मैं रस्ता निहारूं तू आ मावड़ी ।। टेर ।।
बड़े जतन से दादी मैंने कुटिया आज बुहारी, पलक उठाकर पल पल मैया देखूं राह तुम्हारी, माँ चौखट पे कबसे है आँखे गड़ी ।। १ ।।कुटिया मेरी माँ सूनी पड़ी, मैं रस्ता निहारूं तू आ मावड़ी ।।
मैं निर्धन क्या तुझे खिलाऊँ सब है तेरी माया, जैसा भी बन पाया मैया मैंने आज बनाया, माँ बेटे पे किरपा तू करना थोड़ी ।। २ ।।कुटिया मेरी माँ सूनी पड़ी, मैं रस्ता निहारूं तू आ मावड़ी ।।
तेरे चरणों की धूली से मेरी किस्मत खुल जाये, शायद मेरी ये झोपड़िया महल सलोना बन जाये, माँ इकबर तू आजा घड़ी दो घड़ी ।। ३ ।।कुटिया मेरी माँ सूनी पड़ी, मैं रस्ता निहारूं तू आ मावड़ी ।।
“हर्ष” तेरी किरपा से दादी ये बालक तर जाये, तू आयेगी सोच सोच कर आँख मेरी भर आये, माँ अँखियो से आँसू की लागी झड़ी ।। ४कुटिया मेरी माँ सूनी पड़ी, मैं रस्ता निहारूं तू आ मावड़ी ।।