तर्ज,होलिया में उड़े रे गुलाल
श्री राम जी की चढ़ी है बरात जनकपुर नगरी में।जनकपुर नगरी में।जनकपुर नगरी में।श्री राम जी की चढ़ी है बरात जनकपुर नगरी में।
नृप दशरथ आनंद मनाए। गुरु वशिष्ठ मन में मुस्काये। फूली नहीं समाये,जनकपुर नगरी में।श्री राम जी की चढ़ी है बरात जनकपुर नगरी में।
मगन हृदय चहुं ओर बाराती। शोभा जिनकी कही न जाती। कोई ना देखत आघात,जनकपुर नगरी में।श्री राम जी की चढ़ी है बरात जनकपुर नगरी में।
दूल्हा भेष राम जी सोहे। सुर नर मुनि सब के मन मोहे। संग में तीनों भ्रात,जनकपुर नगरी में।श्री राम जी की चढ़ी है बरात जनकपुर नगरी में।
आनंद रूप रूप लख ईनके। रूप ना होए मगन मन इनके। बनी है जनक जी की बात, जनकपुर नगरी में।श्री राम जी की चढ़ी है बरात जनकपुर नगरी में।