तर्ज,मेहंदी रची है थारे हाथा में
भूतेश्वर ने ध्यालो जी, सोया भाग्य जगा लो जी, भगता रो यो रखपाल, बैठ्यो भोलो धणी।
माथे ऊपर चंदा सोहे, जटा में गंग विराजे रे, मुकुट मणिरी आभा सोहे, नाग गले में साजे रे, आ ने आज रिझा ल्यो जी, बिगड़ा काम बणाल्यो जी, भगता रो यो रखपाल, बैठ्यो भोलो धणी।
आ ने आज रिझा ल्यो जी, बिगड़ा काम बणाल्यो जी, भगता रो यो रखपाल, बैठ्यो भोलो धणी।
आक धतूरा खावे बाबो, भंगिया भोग लगावे रे, अंग भभूत रमावे भोलो, धुनि अलख जगावे रे, गंगा जल सु नहा ल्यो जी, काचो दूध चढ़ा ल्यो जी, भगता रो यो रखपाल, बैठ्यो भोलो धणी।
नीलकंठ बाबा को म्हाने, रूप सुहानो लागे रे, भोला जी को ध्यान धरया सु, सगला संकट भागे रे, भक्तो मिलकर ध्यालो जी, सगळा कष्ट मिटा ल्यो जी, भगता रो यो रखपाल, बैठ्यो भोलो धणी।
सोमवार ने भूतनाथ, दर्शन री महिमा भारी रे, निशदिन माथो टेकन, आवे नर ने नारी रे, ‘हर्ष’ के सागे चालो जी, जाकर दर्शन पा लो जी, भगता रो यो रखपाल, बैठ्यो भोलो धणी।
भूतेश्वर ने ध्यालो जी, सोया भाग्य जगा लो जी, भगता रो यो रखपाल, बैठ्यो भोलो धणी।