तर्ज-उड़ जा काले कावां
जब तक सांसे हो मेरी, रहे खाटू आना जाना, अपने इस बेटे को बाबा, दिल से नहीं भूलाना, जल बिन मछली जैसे तड़पे, तुझ बिन तड़पूँ बाबा, और कहीं लगता ना दिल मेरा, जब से तुमसे लागा, लगन लागि तेरे नाम की, ओ खाटू वाले तेरे धाम की।
जबसे खाटू की मिट्टी का, मैंने तिलक लगाया, उस दिन से ऐसा लगता, मेरे अंदर श्याम समाया, खाटू का द्वारा ही तेरा, मेरा आखरी दर है, खाटू की गलियां ही मेरा, स्वर्ग से प्यारा घर है,
उस दिन से ऐसा लगता, मेरे अंदर श्याम समाया, खाटू का द्वारा ही तेरा, मेरा आखरी दर है, खाटू की गलियां ही मेरा, स्वर्ग से प्यारा घर है, लगन लागी तेरे नाम की, ओ खाटू वाले तेरे धाम की।
खाटू जाने के पहले, फिरता था मारा मारा, ना ही कोई मंजिल थी और, ना ही कोई सहारा, जिनको अपना समझा मैंने, बन गए वो बेगाने, दूर दूर मुझसे रहने के, करते रोज बहाने, लगन लागी तेरे नाम की, ओ खाटू वाले तेरे धाम की।
हार के बाबा जब मैं तेरी, चौखट पे था आया, ऐसी जीत दिलाई मुझको, फिर ना कोई हराया, अपने क्या बेगाने सारे, मुझको लगे अपनाने, ‘श्याम’ कहे तेरी माया को,बस तू ही तो जाने लगन लागी तेरे नाम की, ओ खाटू वाले तेरे धाम की।
जब तक सांसे हो मेरी, रहे खाटू आना जाना, अपने इस बेटे को बाबा, दिल से नहीं भूलाना, जल बिन मछली जैसे तड़पे, तुझ बिन तड़पूँ बाबा, और कहीं लगता ना दिल मेरा, जब से तुमसे लागा, लगन लागि तेरे नाम की, ओ खाट वाले तेरे धाम की।