तर्ज – लाई वी न गई
सर को झुका आके, सर को झुका, यहाँ झुकता जहान आके सारा, पल में ये तेरी भर देगा झोलियाँ, बड़ा साँचा है शिव का द्वारा, पल में ये तेरी भर देगा झोलियाँ, बड़ा साँचा हैं शिव का द्वारा।
गंगा की निर्मल धारा, चौखट पे चूमती, बाबा भूतनाथ के वो, चरणों को चूमती, चरणों को चूमती, बैठे सामने निहारे मैया तारा, पल में ये तेरी भर देगा झोलियाँ, बड़ा साँचा हैं शिव का द्वारा।
नूर महिपाल जी का, इसमें समाया है,गुरुवर ने आशियाँ ये, ने प्यार से सजाया है, प्यार से सजाया है, जीवन चरणों में गुजारा, पल में ये तेरी भर देगा झोलियाँ, बड़ा साँचा हैं शिव का द्वारा।
मरघट के वासी है ये, भूतों के नाथ है,
‘हर्ष’ कोई ना जिनका, उनके ये साथ है, उनके ये साथ है, दीन दुखियों का यही सहारा, दीन दुखियों का यही सहारा, पल में ये तेरी भर देगा झोलियाँ, बड़ा साँचा हैं शिव का द्वारा।
सर को झुका आके, सर को झुका, यहाँ झुकता जहान आके सारा, पल में ये तेरी भर देगा झोलियाँ, बड़ा साँचा है शिव का द्वारा, पल में ये तेरी भर देगा झोलियाँ, बड़ा साँचा हैं शिव का द्वारा।