तर्ज- नगरी नगरी द्वारे द्वारे
काई काई देख्यो श्याम के मेले, म्हाने भी बतलाओ जरा, कैसो लाग्यो श्याम हमारो, म्हाने भी समझाओ जरा, काई काई बोलूं काई काई देख्यो, थे भी देखन जाओ जरा, माथे टेक के आया म्हे तो, थे भी टेक के आओ जरा, काई काई देख्यों श्याम के मेले, म्हाने भी समझाओ जरा।
कैसो थो सिणगार श्याम को, कुण से फूल को गजरो थो, बोलो म्हारे श्याम थणी के, नैण में कुण सो कजरो थो, म्हारी उत्सुकता ने समझो, गौर थोड़ो फरमाओ जरा, काई काई देख्यों श्याम के मेले, म्हाने भी समझाओ जरा।
बोलो म्हारे श्याम धणी के, नैण में कुण सो कजरो थो, म्हारी उत्सुकता ने समझो, गौर थोड़ो फरमाओ जरा, काई काई देख्यों श्याम के मेले, म्हाने भी समझाओ जरा।
बाग़ का सारा फूल भरया था, मोटो ताजो गजरो थो, नैना माहि करुणा भरी थी, गाड़ो गाड़ो कजरो थो, सुधबुध खोकर आया म्हे तो, थे भी खोकर आओ जरा, काई काई देख्यों श्याम के मेले, म्हाने भी समझाओ जरा।
पांगलिया ने नाचतो देख्यो, श्याम धणी के बारणे, अर्जी बोल रह्यो थो गुंगो, सांवरिया के कान में, बात अगर झूठी लागे तो, थे भी जाकर आओ जरा, काई काई देख्यों श्याम के मेले, म्हाने भी समझाओ जरा।
काई काई देख्यो श्याम के मेले, म्हाने भी बतलाओ जरा, कैसो लाग्यो श्याम हमारो, म्हाने भी समझाओ जरा, काई काई बोलूं काई काई देख्यो, थे भी देखन जाओ जरा, माथे टेक के आया म्हे तो, थे भी टेक के आओ जरा, काई काई देख्यों श्याम के मेले, म्हाने भी समझाओ जरा।