तर्ज- सांवरे के दीवानों की महफ़िल
सांवरे की सेवा में जो मस्ती, वैसी मस्ती जहां में नहीं है, ये मस्ती बरसती है रज के, ऐसे रिमझिम बरसती नहीं है, साँवरे की सेवा में जो मस्ती।
दुनिया वालों ने जब मुझसे पूछा, करता क्या है जो तुझपे कृपा है, करता हूँ साँवरे की मैं सेवा, इससे बढ़कर मेरे लिए क्या है, साँवरे की सेवा में जो मस्ती, वैसी मस्ती जहां में नहीं है ।
कोई श्रृंगार की करता सेवा, कोई ताली से पाता है मेवा, जो भी अर्जी लगाकर पुकारे, आया ना हो ये होता नहीं है, साँवरे की सेवा में जो मस्ती, वैसी मस्ती जहां में नहीं है ।
जबसे मस्त मंडल से जुड़ा हूँ, मैं कदम कितने आगे बढ़ा हूँ, ‘रवि’ कर लूँ कृपाओं की गिनती, इतनी औकात मेरी नहीं है,साँवरे की सेवा में जो मस्ती, वैसी मस्ती जहां में नहीं है ।
सांवरे की सेवा में जो मस्ती, वैसी मस्ती जहां में नहीं है, ये मस्ती बरसती है रज के, ऐसे रिमझिम बरसती नहीं है, साँवरे की सेवा में जो मस्ती।