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श्याम भजन लिरिक्स

Agar tune daya ka hath sir par na dhara hota,अगर तूने दया का हाथ, सिर पर ना धरा होता,shyam bhajan

अगर तूने दया का हाथ, सिर पर ना धरा होता,



तर्ज- मुझे तेरी मोहब्बत का

अगर तूने दया का हाथ, सिर पर ना धरा होता, तो मिट जाती मेरी हस्ती, ना जाने कहाँ पड़ा होता, अगर तुने दया का हाथ, सिर पर ना धरा होता ।



सितमगर बन के दुनिया ने, सितम लाखों ही ढ़ाये है, तभी तो हारकर बाबा, तुम्हारे द्वार आये है, अगर पग पग पे सुख-दुख में, तू संग में ना खड़ा होता, तो मिट जाती मेरी हस्ती, ना जाने कहाँ पड़ा होता, अगर तुने दया का हाथ, सिर पर ना धरा होता ।

मुझे जब याद आता है, वो तूफानों का था मंजर, कहीं मर जाऊँ ना डर से, बड़ा भय था मेरे अंदर, मेरे खातिर तूफानों से, अगर तू ना लड़ा होता, तो मिट जाती मेरी हस्ती, ना जाने कहाँ पड़ा होता, अगर तुने दया का हाथ, सिर पर ना धरा होता ।

बड़ा गमगीन रहता था, मैं क्या क्या अपनी बतलाऊँ, कलेजा चीर के अपने, मैं कैसे दुखड़े दिखलाऊँ, अगर इस ‘श्याम’ का दामन, खुशी से ना भरा होता,तो मिट जाती मेरी हस्ती, ना जाने कहाँ पड़ा होता, अगर तुने दया का हाथ, सिर पर ना धरा होता



अगर तूने दया का हाथ, सिर पर ना धरा होता, तो मिट जाती मेरी हस्ती, ना जाने कहाँ पड़ा होता, अगर तुने दया का हाथ, सिर पर ना धरा होता ।

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