तर्ज- कईया बैठ्या हो चुपचाप
थारी मोरछड़ी सरकार, सर पे फिरा दियो एक बार, म्हारा खाटू रा सरदार, बिगड़ी यूँ बन जावेगी म्हारी भी,
ई को कितनो करिश्मो यूँ जाणु हूँ, थे ही सिर पे फिराओगा मानु हूँ, जईया भगत करे सत्कार, आओ लीले रा असवार, म्हारा खाटू रा सरदार, बिगड़ी यूँ बन जावेगी म्हारी भी, बिगड़ी यूँ बन जावेगी म्हारी भी।
जईया भगत करे सत्कार, आओ लीले रा असवार, म्हारा खाटू रा सरदार, बिगड़ी यूँ बन जावेगी म्हारी भी, बिगड़ी यूँ बन जावेगी म्हारी भी।
खोल्या ताला था श्याम बहादुर जी, थाने पट खोल्या भगता के खातिर जी, जद भी करया भगत मनुहार, थे करता हो बेड़ा पार, म्हारा खाटू रा सरदार, बिगड़ी यूँ बन जावेगी म्हारी भी, बिगड़ी यूँ बन जावेगी म्हारी भी।
म्हारी मनड़े री सारी जानो बात जी, देरी कईयाँ हो करसि दीनानाथ जी, कहे ‘स्नेह’ मेरे सरकार, थे ही म्हारा पालनहार,म्हारा खाटू रा सरदार, बिगड़ी यूँ बन जावेगी म्हारी भी, बिगड़ी यूँ बन जावेगी म्हारी भी।
थारी मोरछड़ी सरकार, सर पे फिरा दियो एक बार, म्हारा खाटू रा सरदार, बिगड़ी यूँ बन जावेगी म्हारी भी, बिगड़ी यूँ बन जावेगी म्हारी भी।