तर्ज- कान में झुमका
सांवरिया के ठाठ निराले, ऊँचे ऊँचे खटके, कही पे गीता ज्ञान बांटता, कही फोड़ता मटकी, तो पे वारी वारी जाऊं, बलिहारी जाऊं कृष्णा, वारी वारी जाऊं, बलिहारी जाऊं कृष्णा।
कही भात है भराए तू, खीचड़ खाया कर्मा का, धोया चरण सुदामा का, गोपियों के पीछे भागा, ले के पिचकारी तू, रानी रुक्मणि को, हर लाया वर लाया, ले आया कृष्णा, चोरी से भगा के तू, देखा देखा रास भी देखा, निचे वंशी वट के, छोड़ के उनको मथुरा भागा, देखा नहीं पलट के, तो पे वारी वारी जाऊं, बलिहारी जाऊं कृष्णा, वारी वारी जाऊं, बलिहारी जाऊं कृष्णा।
लीला तेरी तू जाने, वेद ग्रन्थ ना पहचाने, मीरा के बने ठाकुर जी, राधा के दीवाने हो, गज के प्राण बचाते हो, भक्तवत्सल कहलाते हो, कई रण जीते, रणछोड़ भी कहाते हो, ‘लहरी’ ना जाने, क्या बखाने यही माने, बड़ा ही चितचोर है कन्हैया तू, तेरे द्वारे नाच रहे, सब भक्त खड़े है डट के, आजा फिर वो तान सुना दे, दर्शन हो बेखटके, तो पे वारी वारी जाऊं, बलिहारी जाऊं कृष्णा, वारी वारी जाऊं, बलिहारी जाऊं कृष्णा।
सांवरिया के ठाठ निराले, ऊँचे ऊँचे खटके, कही पे गीता ज्ञान बांटता, कही फोड़ता मटकी, तो पे वारी वारी जाऊं, बलिहारी जाऊं कृष्णा, वारी वारी जाऊं, बलिहारी जाऊं कृष्णा।