मोरी टेर सुनो ब्रज के वासी, ओ गोवर्धन गिरधारी।।
आये हैं हम तेरे द्वारे, टेर सुनो जसुदा के प्यारे, चल न कंटक पथ पर, चलते चलते ये पग हारे, विनय सुनो मोरी बनवारी, ओ गोवर्धन गिरधारी।
अश्रुधार सींच रहा हूँ, है गिरधारी चरण तुम्हारे, कौन खबर ले तुम बिन मोरी, कौन हमारी विपदा टारे, है करुनाकर जग हितकारी, ओ गोवर्धन गिरधारी।।
भक्ति भाव की माला है बस, और नहीं कुछ पास हमारे, तुमसा डेटा छोड़ के है हरि, किसके जाऊं पाव पाखरे, ‘राजेन्द्र’ तुम है बलिहारी, ओ गोवर्धन गिरधारी ।।
मोरी टेर सुनो ब्रज के वासी, ओ गोवर्धन गिरधारी।।