तर्ज – रश्के कमर
गौरा ने घोट कर, पीस कर छान कर,
शिव को भंगिया पिलाई, मजा आ गया, छोड़ कैलाश को, पहुंचे शमशान में, गांजे की दम लगायी, मजा आ गया।
जब नशा भांग, गांजे का चढ़ने लगा, भोला नचने लगे, डमरू बजने लगा, जल चुकी थी चिताएं, जो शमशान में, उनकी भस्मी रमाई, मजा आ गया।।
बदी फागुन चतुर्दश, तिथी आई है, शिव से गौरा मिलन, की घड़ी आई है, शिवजी दूल्हा बने, गौरा दुल्हन बनी, ऐसी शादी रचाई, मजा आ गया ।।
भोला धनवान है,न तो कंगाल है,
शिव महादेव हैं, शिव महाकाल है, शिव के चरणों में हम, आ गये हैं ‘पदम्’, राह मुक्ति की पाई, मजा आ गया।
गौरा ने घोट कर, पीस कर छान कर, शिव को भंगिया पिलाई, मजा आ गया, छोड़ कैलाश को, पहुंचे शमशान में, गांजे की दम लगायी,
मजा आ गया।