तर्ज, बचपन की मोहब्बत को
जब दिन गर्दिश के थे, ना कोई पूछने वाला था, उस वक्त मुझे बाबा, तूने ही संभाला था, जब दिन गर्दिश के थे, ना कोई पूछने वाला था।
दाने दाने के लिए,मैं गुहार लगाता था, कोई साथ तो दो मेरा,मैं पुकारा लगाता था, भूखे ही सोते थे, ना पास निवाला वाला था, उस वक्त मुझे बाबा, तूने ही संभाला था, जब दिन गर्दिश के थे, ना कोई पूछने वाला था ।।
मैं भूला नहीं कुछ भी, सब कुछ है याद मुझे, अपनो ने छोड़ा था, करके बर्बाद मुझे, मेरी लाज को जब जग ने, सरे आम उछाला था, उस वक्त मुझे बाबा, तूने ही संभाला था, जब दिन गर्दिंश के थे, ना कोई पूछने वाला था।
मेरी मजबूरी का, सब लाभ उठाते थे, मुझे अपने इशारों पे, ये खूब नचाते थे, सबने मुझसे अपना, बस काम निकाला था, उस वक्त मुझे बाबा, तूने ही संभाला था, जब दिन गर्दिश के थे, ना कोई पूछने वाला था ।।
जिन्हें सोचता था मैं खरा, वो असल में खोटे थे, झूठी हमदर्दी के, चेहरों पे मुखोटे थे, हर अपने ने ‘माधव’, मुश्किल में डाला था, उस वक्त मुझे बाबा, तूने ही संभाला था, जब दिन गर्दिश के थे, ना कोई पूछने वाला था ।।
जब दिन गर्दिश के थे, ना कोई पूछने वाला था, उस वक्त मुझे बाबा, तूने ही संभाला था, जब दिन गर्दिश के थे, ना कोई पूछने वाला था।।