सब की सुने दिन रात, माता रानी सब की सुने।
जन्म जन्म की, विगड़ी यहॉं पर।
बन जाती है बात, माता रानी सब की सुने,
सब की सुने, सब की सुने,
हो’सब की सुने दिन रात, माता रानी सब की सुने।
दुःखी हो के जब भी, पुकारे कोई आत्मा,
कर देती कष्टों का, घड़ियों में ख़ात्म।
बदल देती ताना बाना, हाथों की लकीरों का,
रखती हिसाब मईया, शहनशाह फकीरों का।
वोह निर्बल बन, जाए बलशाली
जिस पे रखती हाथ, माता रानी सब की सुने।
सब की सुने, सब की सुने,
हो,सब की सुने दिन रात, माता रानी सब की सुने।
इसी माँ ने किए हैं, अंधेरों में उजाले,
बने गुमनाम यहॉँ, ऊँचे नाम वाले।
जब चाहे पलट देती, कर्मों का पासा,
सुख दुःख इसी का है, खेल तमाशा।
यहॉं हर किसी को, मिल जाती है,
मुँह मांगी सौगात, माता रानी सब की सुने।
सब की सुने, सब की सुने,
हो,सब की सुने दिन रात, माता रानी सब की सुने।
इस के सहारे ही, जहान सारा पलता,
क्या किया कब कहाँ, पता भी ना चलता।
आस्था का सोना यह माँ, आग में तपाती
कब कहीं जा के उसे, कुन्दन बनाती।
इसे न मतलब, कोई मज़हब से।
न ही पूछे ज़ात, माता रानी सब की सुने,सब की सुने, सब की सुने।
हो,सब की सुने दिन रात, माता रानी सब की सुने।