तर्ज- हमें और जीने की
कहाँ बेकसों का, रहा ये ज़माना, चले आओ कान्हा, चले आओ कान्हा।।
यहां पर सुकूं का, नहीं कोई पल है, जुंबा पे हैं कांटे, आंखों में छल है, है सारा ये ग़म जो, तुम्हे है सुनाना, चले आओ कान्हा, चले आओ कान्हा।।
कहाँ बेकसों का, रहा ये ज़माना, चले आओ कान्हा, चले आओ कान्हा।।
जुंबा पे हैं कांटे, आंखों में छल है, है सारा ये ग़म जो, तुम्हे है सुनाना, चले आओ कान्हा, चले आओ कान्हा ।।
कहाँ बेकसों का, रहा ये ज़माना, चले आओ कान्हा, चले आओ कान्हा।।
लिखा जो नसीबों में, वो है हमको प्यारा, जो मर्जी तुम्हारी, वो है अब गवारा, बस एक ये तमन्ना, कि तुमको है पाना, चले आओ कान्हा, चले आओ कान्हा।।
कहाँ बेकसों का, रहा ये ज़माना, चले आओ कान्हा, चले आओ कान्हा।।