तर्ज – सागर किनारे
अगर आसमा तक हाथ मेरे जाते, तो चाँद और सितारो से हम, तुमको सजाते ।।
मगर मैं करूँ क्या, ये है मजबूरी,
बहुत है दूरी, उनमे और मुझमे,
उनमे और मुझमे, बहुत है दूरी। हमारी पहुंच में, अगर जो ये आते, तो चाँद और सितारो से हम,
तुमको सजाते।।
अगर आसमा तक हाथ मेरे जाते, तो चाँद और सितारो से हम, तुमको सजाते ।।
सपने बहुत है, तो चाँद और सितारो से हम, तुमको सजाते ।।
करूँ सच मैं कैसे,करूँ क्या विवश हूँ,
लाचार जैसे, करूँ क्या विवश हूँ,
लाचार जैसे,पंछियो के जैसे। पर अगर जो पाते।तो चाँद और सितारो से हम,
तुमको सजाते।।
अगर आसमा तक हाथ मेरे जाते, तो चाँद और सितारो से हम, तुमको सजाते ।।
मानता हूँ मुमकिन,नही ऐसा होना। व्यर्थ है ये सपने,नैनो में संजोना। व्यर्थ है ये सपने,
नैनो में संजोना।
रास्ता जो मिलता, देर ना लगाते,
तो चाँद और सितारो से हम, तुमको सजाते ।।
अगर आसमा तक हाथ मेरे जाते, तो चाँद और सितारो से हम, तुमको सजाते ।।
जो होना सके कर, दिखाते तुम्ही हो,
असंभव को संभव, बनाते तुम्ही हो। असंभव को संभव,बेधड़क’ जो थोड़ा, ज़ोर तुम लगाते,
बनाते तुम्ही हो, तो चाँद और सितारो से हम, तुमको सजाते ।।
अगर आसमा तक हाथ मेरे जाते, तो चाँद और सितारो से हम, तुमको सजाते ।।