तर्ज- कोई हसीना जब रूठ
फागुन की ग्यारस जब आ जाती है तो, साँवरे की याद सताती है। खाटू की गाड़ी जब छूट जाती है तो, बेचैनी बढ़ जाती है।।
में फागुन में बाबा का लगता है मेला। श्याम प्रेमियों का आता है रेला। होती है मेहरबानियां, भरती है सबकी झोलियाँ। फागण की ग्यारस जब आ जाती है तो, साँवरे की याद सताती है।
खाटू की गलियों में उड़ती गुलाल है। सांवरे के सेवक करते धमाल है। लगती है लाखों अर्जियां, होती है सुनवाईयां भरती है सबकी झोलियाँ।फागण की ग्यारस जब आ जाती है तो, साँवरे की याद सताती है।
खाटू की गलियों में उड़ती गुलाल है, सांवरे के सेवक करते धमाल है, लगती है लाखों अर्जियां, होती है सुनवाईयां। खाटू की गाड़ी जब छूट जाती है तो, बेचैनी बढ़ जाती है।
लम्बी कतारों में दीखते निशान है। पुरे यहाँ पर होते सबके अरमान है। ‘जय कौशिक’ जो भी लिख रहा, लिखवाते बाबा श्याम है। फागण की ग्यारस जब आ जाती है तो, साँवरे की याद सताती है।
फागुन की ग्यारस जब आ जाती है तो, साँवरे की याद सताती है, खाटू की गाड़ी जब छूट जाती है तो, बेचैनी बढ़ जाती है ।।