चल चल चल तू खाटू की गली। फिर से सजी है बाबा की नगरी। हाथों में निशान लेकर चले आओ ना। आया है मेला फिर फागन का। देगा दर्शन सबको आब सांवरा।
थोड़ा वक्त निकालो छोड़ कर के, तुम घर का झमेला, देखो आता नहीं है रोज-रोज फागुन का मेला। आते दर्शन करने लोग दूर-दूर से, तुम करके बहाना चले आना ना।
चल चल चल तू खाटू की गली। फिर से सजी है बाबा की नगरी। हाथों में निशान लेकर चले आओ ना। आया है मेला फिर फागन का। देगा दर्शन सबको आब सांवरा।
है सर पर लिए क्यों फिरता तू पापों का बोझा, पाप आकर धोले श्याम कुंड में तुझे मिला है मौका। अरे वह मूर्ख प्राणी मनाले शीश के दानी। कहीं यह मौका चूक जाए ना।
गली-गली ढूंढ ले पावन गली, फिर से सजी है बाबा की नगरी।हाथों में निशान लेकर चले आओ ना। आया है मेला फिर फागन का। देगा दर्शन सबको आब सांवरा।
मत सोच आजा इन के दर पे, दिन अच्छे या बुरे हैं। तेरे मेरे जैसे लाखों ही चौखट पर खड़े हैं। यह देगा प्यार उसी को नजर में आ जाए जो। तू नजरे इनसे चुराना ना।
चले जा मुरख तू श्याम की गली, फिर से सजी है बाबा की नगरी। हाथों में निशान लेकर चले आओ ना। आया है मेला फिर फागन का। देगा दर्शन सबको आब सांवरा।
चल चल चल तू खाटू की गली। फिर से सजी है बाबा की नगरी। हाथों में निशान लेकर चले आओ ना। आया है मेला फिर फागन का। देगा दर्शन सबको आब सांवरा।