कान्हा पिचकारी मत मार, चूनर रंग-बिरंगी होय,
चूनर नई हमारी प्यारे
हे मनमोहन बंसी वारे
इतनी सुन ले नन्द-दुलारे
पूछेगी वह सास हमारी, कहाँ से लाई भिजोय कान्हा पिचकारी,मत मार, चूनर रंग-बिरंगी होय,
सबको ढंग भयो मतवारो।दुखदाई है फागुन वारो।
कुलवंसिन को औगुन गारो
राह मेरी न रोक कान्हा मैं समझाऊँ तोय,कान्हा पिचकारी,मत मार, चूनर रंग-बिरंगी होय,
तान दई रंग की पिचकारी
हँस-हँस के रसिया बनवारी
भीज गईं सबरी ब्रजनारी।राधा ने हरि का पीताम्बर खींचा मद में खोय। कान्हा पिचकारी,मत मार, चूनर रंग-बिरंगी होय,
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कान्हा पिचकारी मत मार, चूनर रंग-बिरंगी होय,