तर्ज, जिंदगी की ना टूटे लड़ी
थक गई मेरी अखियां बड़ी, तू क्या जाने मैं कब से खड़ी।थक गई मेरी अखियां बड़ी, तू क्या जाने मैं कब से खड़ी।
ना थमी आंसुओं की लड़ी,तू क्या जाने मैं कब से खड़ी।ना थमी आंसुओं की लड़ी,तू क्या जाने मैं कब से खड़ी।
केले के छिलके तक खा गया, झूठे बेरों को भी पा गया। जाने उसमें वह क्या बात थी। चल के कुब्जा के घर आ गया।🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺 तुमको मेरी गली ना मिली।तू क्या जाने मैं कब से खड़ी।
थक गई मेरी अखियां बड़ी, तू क्या जाने मैं कब से खड़ी।थक गई मेरी अखियां बड़ी, तू क्या जाने मैं कब से खड़ी।
लाज द्रोपती की राखी कभी, बुआ कुंती के कष्ट हरे। अर्जुन का बना सारथी, उतरा उत्तरा के गर्भ में। जा परीक्षित की रक्षा करी,तुमको मेरी गली ना मिली।
थक गई मेरी अखियां बड़ी, तू क्या जाने मैं कब से खड़ी।थक गई मेरी अखियां बड़ी, तू क्या जाने मैं कब से खड़ी।
हुई आठों पहर बावरी, कुछ ना सूझे किधर जाऊ में। एक झलक मुझको दिखला भी दो, इससे पहले कि मर जाऊं मैं।🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺जाए जीवन की बीती घड़ी।श्री हरि दासी उदासी खड़ी।
थक गई मेरी अखियां बड़ी, तू क्या जाने मैं कब से खड़ी।थक गई मेरी अखियां बड़ी, तू क्या जाने मैं कब से खड़ी।
सब पे करुणा बरसती नही,एक मेरी तरसती नहीं। एक ना एक दिन सुनेगी तुझे, मन ही मन में सिसकती रही।🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺अब ना दूरी ये जाए सही,तू क्या जाने मैं कब से खड़ी।
थक गई मेरी अखियां बड़ी, तू क्या जाने मैं कब से खड़ी।थक गई मेरी अखियां बड़ी, तू क्या जाने मैं कब से खड़ी।