तर्ज – मैं पल दो पल का शायर हूँ।
मैं उस दरबार का सेवक हूँ,
जिस दर की अमर कहानी है,
मैं गर्व से जग में कहता हूँ,
मेरा मालिक शीश का दानी है,
मै उस दरबार का सेवक हूँ।।
इनके दरबार के नौकर भी,
दुनिया में सेठ कहाते है,
जिनको है मिली सेवा इनकी,
वो किस्मत पे इतराते है,
जो श्याम की सेवा रोज करे,
वो रात दिवस फिर मौज करे,
जिन पे है इनायत बाबा की,
खुद खुशियाँ उनकी खोज करे।
मै उस दरबार का सेवक हूँ,
जिस दर की अमर कहानी है,
मैं गर्व से जग में कहता हूँ,
मेरा मालिक शीश का दानी है,
मै उस दरबार का सेवक हूँ।।
जब भी कोई चित्कार करे,
तो इनका सिंहासन हिलता है,
ये रोक नही पाता खुद को,
झट जा कर उससे मिलता है,
जो श्याम प्रभु से आस करे,
बाबा ना उनको निराश करे,
उन्हें खुद ये राह दिखाता है,
जो आँख मूंद विश्वास करे।
मै उस दरबार का सेवक हूँ,
जिस दर की अमर कहानी है,
मैं गर्व से जग में कहता हूँ,
मेरा मालिक शीश का दानी है,
मै उस दरबार का सेवक हूँ।।
जिसने भी श्याम की चौखट पर,
आ कर के माथा टेका है,
उस ने मुड़ करके जीवन में,
वापस ना फिर कभी देखा है,
‘माधव’ जब श्याम सहारा है,
तो जीवन में पौबारा है,
जो हार गया एक बार यहाँ,
वो हारा नही दोबारा है।
मै उस दरबार का सेवक हूँ,
जिस दर की अमर कहानी है,
मैं गर्व से जग में कहता हूँ,
मेरा मालिक शीश का दानी है,
मै उस दरबार का सेवक हूँ।।
मैं उस दरबार का सेवक हूँ,
जिस दर की अमर कहानी है,
मैं गर्व से जग में कहता हूँ,
मेरा मालिक शीश का दानी है,
मै उस दरबार का सेवक हूँ।।
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मैं उस दरबार का सेवक हूँ,
जिस दर की अमर कहानी है,