तर्ज,मुझे पीने का शौक नहीं
विष पीने का शौक नहीं पीता संकट मिटाने को।आई विपदा मिटाने को।पीता संकट मिटाने को।
जब जब है हुआ मंथन,और उसमें से निकले रतन।सब देवों ने बांट लिया,आपस में होके मगन।जब निकला जहर आए,आए तुमको बुलाने को।
विष पीने का शौक नहीं पीता संकट मिटाने को।आई विपदा मिटाने को।पीता संकट मिटाने को।
जब निकला था अमृत कलश,देवताओं ने मिलकर पिया।नही पूछा प्रभु आपको,किसने कितना पिया जो पिया।जब निकला हलाहल तो आए तुमको मनाने को।
विष पीने का शौक नहीं पीता संकट मिटाने को।आई विपदा मिटाने को।पीता संकट मिटाने को।
जो विपदा है सबकी हरे,कहलाते वही देव है।देवों के वही देव है,कहलाते महादेव है।कुछ पाने को चाह नहीं,पिता श्रृष्टि बचाने को।
विष पीने का शौक नहीं पीता संकट मिटाने को।आई विपदा मिटाने को।पीता संकट मिटाने को।
विष पीने का शौक नहीं पीता संकट मिटाने को।आई विपदा मिटाने को।पीता संकट मिटाने को।