आज सखी ऐसो बनाइयो गोपाल को।
घुम घुमारो जरी वालों लहंगो,
अंगिया के मोती नगीना से महंगो,
चुनरी उड़ाईयो नंदलाल को,
आज सखी ऐसो बनाइयो गोपाल को।
छोटे छोटे हाथों में फूलन के गजरे,
बड़े-बड़े नैनों में जीनो जीनो कजरा,
बिंदिया लगाई ओ गोपाल को।
आज सखी ऐसो बनाइयो गोपाल को।
ऐसी लली जाकर नैनों में डोरे,
अचरज में डूबे गोकुल के छोरे,
नथनी पहन आयो गोपाल को,,
आज सखी ऐसो बनाइयो गोपाल को।
ऐसी लगी जैसे दोने पर आई,
लज्जा शर्म संग पीहर से लाई,
घुंघट निकालो सवा हाथ को।
आज सखी ऐसो बनाइयो गोपाल को।
“नारायण” छवि पे वारू या तन मन,
ब्रज में रहे बारह महीना ये फागुन,
विनती सुनाइयो गोपाल को,,
आज सखी ऐसो बनायो नंदलाल को।
आज सखी ऐसो बनाइयो गोपाल को…
आज सखी ऐसो बनाइयो गोपाल को…..
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आज सखी ऐसो बनाइयो गोपाल को।