संत समागम हरि कथा , तुलसी दुर्लभ दोई।
सूतधारा और लक्मी , पापी के भी होई।
गुरासा शरण आपरी आया .
शरणों में आया बहुत सुख पाया,
मिट गया जमड़ा रा दाया।
गुरासा शरण आपरी आया।
ओ मन मारो काग स्वरूपी ,
अवगुण बहुत भराया ।
सतगुरु स्वामी हंस बणाया ,
मेहरा मे मोती पाया।।
गुरासा शरण आपरी आया।
शरणे आया,बहुत सुख पाया,
मिट गया जमड़ा रा दाया।
गुरासा शरण आपरी आया।
सूरता मारी थी नखराली ,
फिर फिर गोता खाया ।
सतगुरु बॉण शब्द रा वाया ,
नुरता निशान घुराया ।।
गुरासा शरण आपरी आया।
शरणे आया,बहुत सुख पाया,
मिट गया जमड़ा रा दाया।
गुरासा शरण आपरी आया।
अब मारी सुरता लागी राम से ,
तारो तार मिलाया।
आठों पौर अमिरस बरसे ,
पीवत प्यास बुझाया।
गुरासा शरण आपरी आया।
शरणे आया,बहुत सुख पाया,
मिट गया जमड़ा रा दाया।
गुरासा शरण आपरी आया।