राम को देख कर के जनक नंदिनी,
बाग में वो खड़ी की खड़ी रह गयी।
राम देखे सिया को सिया राम को।
चारो अँखिआ लड़ी की लड़ी रह गयी॥
थे जनक पुर गये देखने के लिए,
सारी सखियाँ झरोखो से झाँकन लगी।
देखते ही नजर मिल गयी प्रेम की,
जो जहाँ थी खड़ी की खड़ी रह गयी॥
राम को देख कर के जनक नंदिनी,बाग में वो खड़ी की खड़ी रह गयी।
बोली एक सखी राम को देखकर।
रच गयी है विधाता ने जोड़ी सुघर।
फिर धनुष कैसे तोड़ेंगे वारे कुंवर।
मन में शंका बनी की बनी रह गयी॥🌺🌺राम को देख कर के जनक नंदिनी,बाग में वो खड़ी की खड़ी रह गयी।
बोली दूसरी सखी छोटन देखन में है,
फिर चमत्कार इनका नहीं जानती।
एक ही बाण में ताड़िका राक्षसी,
उठ सकी ना पड़ी की पड़ी रह गयी॥ 🌺🌺राम को देख कर के जनक नंदिनी,बाग में वो खड़ी की खड़ी रह गयी।
राम को देख कर के जनक नंदिनी,
बाग में वो खड़ी की खड़ी रह गयी।
राम देखे सिया को सिया राम को,
चारो अँखिआ लड़ी की लड़ी रह गयी॥
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राम को देख कर के जनक नंदिनी,
बाग में वो खड़ी की खड़ी रह गयी