तर्ज,म्हारी चंद्र गवरजा
उठ मात यशोदा, कानूड़ो सूत्यो तेरे पालने।२
गहरी निंदिया कईयां सोई, उठती रोज अंधेरे। सोने को सूरज उग आयो आज आंगणे तेरे रे। उठ मात यशोदा….
के निंदन में देख रही तूं, कोई सुहानो सपनो। सदा सुहानो सदा सुरंगो, लाल तेरो यो अपनों रे। उठ मात यशोदा…
आंख खोलकर नीरख लाल को, मुखड़ो प्यारो प्यारो। देखती ही रह जावे मैया, भरे नहीं मन थारो रे। उठ मात यशोदा…
मारी है किलकारी कान्हा, जाग उठी नंदरानी। सुध बुध भूली देख लाल ने, कोन्या निकली वाणी रे। उठ मात यशोदा…
बिन्नू धन-धन मां यशोदा, धन्य धन्य बृजवासी। बड़े भाग्य से जन्म्यो कान्हो, दुनिया शीश नवासी रे ।उठ माता यशोदा…