तर्ज,पल्लो लटके
वृंदावन की बादली में बिजली कड़के, गईयां मोड़ ले गोपाला,म्हारी छाती धड़के।
नंद जी भी कड़के, मां यशोदा कड़के।पल्लो छोड़ दे सांवरिया,घर से आई लड़ के।गईयां मोड़ ले गोपाला,म्हारी छाती धड़के।
सासूजी भी कड़के म्हारो, सुसरो भड़के।नित की आऊं में गोपाला,घर से लड़ लड़ के।गईयां मोड़ ले गोपाला,म्हारी छाती धड़के।
जेठजी भी कड़के म्हारा,जेठानी खड़के।देवर लाठी भी दिखावे मने,खड़ी कर के।गईयां मोड़ ले गोपाला,म्हारी छाती धड़के।
आडोसी भी कड़के म्हारा पाडोसी भड़के।म्हारी संग की सहेलयां पूछे, अड़ अड़ के।गईयां मोड़ ले गोपाला,म्हारी छाती धड़के।